सूरजमुखी एक सदाबहार फसल है, इसकी खेती रबी, जायद और खरीफ के तीनों सीजन में की जा सकती है। बतादें, कि सूरजमुखी की खेती के लिए सबसे अच्छा समय मार्च के माह को माना जाता है। इस फसल को कृषकों के बीच नकदी फसल के रूप में भी पहचाना जाता है।
सूरजमुखी की खेती से किसान कम लागत में ज्यादा मुनाफा अर्जित कर सकते हैं। इसके बीजों से 90-100 दिनों के समयांतराल में 45 से 50% तक तेल हांसिल किया जा सकता है।
सूरजमुखी की फसल को शानदार विकास देने के लिए 3 से 4 बार सिंचाई की जाती है, ताकि इसके पौधे सही तरीके से पनप सकें। अगर हम इसकी टॉप 5 उन्नत किस्मों की बात करें, तो इसमें एमएसएफएस 8, केवीएसएच 1, एसएच 3322, ज्वालामुखी और एमएसएफएच 4 आती हैं।
सूरजमुखी की उन्नत किस्मों में एमएसएफएस-8 भी शम्मिलित है। इस किस्म के सूरजमुखी के पौधे की ऊंचाई तकरीबन 170 से 200 सेमी तक रहती है। एमएसएफएस-8 सूरजमुखी के बीज में 42 से 44% तक तेल की मात्रा पाई जाती है।
ये भी पढ़ें: सूरजमुखी की फसल के लिए उन्नत कृषि विधियाँ (Sunflower Farming in Hindi)
किसान को सूरजमुखी की इस फसल को तैयार करने में 90 से 100 दिनों का वक्त लगता है। MSFS-8 किस्म की सूरजमुखी फसल की यदि एकड़ भूमि पर खेती की जाती है, जो इससे लगभग 6 से 7.2 क्विंटल तक उपज मिलती है।
केवीएसएच-1 सूरजमुखी की उन्नत किस्मों में शम्मिलित है, जो कि शानदार उत्पादन देती है। सूरजमुखी के इस किस्म वाले पौधे की ऊंचाई तकरीबन 150 से 180 सेमी तक होती है।
केवीएसएच-1 सूरजमुखी के बीज से लगभग 43 से 45% तक तेल प्राप्त होता है। किसान को सूरजमुखी की इस उन्नत किस्म को विकसित करने में 90 से 95 दिनों की समयावधि लगती है। अगर केवीएसएच-1 सूरजमुखी की फसल को एकड़ भूमि पर लगाया जाए, तो इससे तकरीबन 12 से 14 क्विंटल तक उत्पादन हो सकता है।
सूरजमुखी की शानदार उपज देने वाली किस्मों में एसएच-3322 भी शुमार है। इस सूरजमुखी की उन्नत किस्म के पौधों की ऊंचाई तकरीबन 137 से 175 सेमी तक पाई जाती है। एसएच-3322 सूरजमुखी के बीज से लगभग 40-42% फीसद तक तेल की मात्रा हांसिल होती है।
किसान को एसएच-3322 किस्म की सूरजमुखी फसल को विकसित करने में 90 से 95 दिनों का वक्त लग जाता है। सूरजमुखी की एसएच-3322 किस्म को अगर एक एकड़ जमीन पर उगाया जाए, तो इससे तकरीबन 11.2 से 12 क्विंटल तक की उपज हांसिल हो सकती है।
सूरजमुखी की ज्वालामुखी किस्म के बीजों में 42 से 44% प्रतिशत तक तेल पाया जाता है। किसान को इसकी फसल तैयार करने में 85 से 90 दिनों का वक्त लगता है।
ये भी पढ़ें: छत्तीसगढ़ में किसान कर रहे हैं सूरजमुखी की खेती, आय में होगी बढ़ोत्तरी
ज्वालामुखी पौधे की ऊंचाई तकरीबन 170 सेमी तक रहती है। सूरजमुखी की इस किस्म को एक एकड़ भूमि पर लगाने से लगभग 12 से 14 क्विंटल तक पैदावार हो जाती है।
सूरजमुखी की इस एमएसएफएच-4 किस्म की खेती रबी और जायद के सीजन में की जाती है। इस फसल के पौधे की ऊंचाई तकरीबन 150 सेमी तक पाई जाती है।
एमएसएफएच-4 सूरजमुखी के बीजों में तकरीबन 42 से 44% तक तेल की मात्रा विघमान रहती है। इस किस्म की फसल को तैयार करने में किसान को 90 से 95 दिनों का वक्त लग जाता है।
अगर किसान इस किस्म की फसल को एक एकड़ खेत में लगाते हैं, तो इससे करीब 8 से 12 क्विंटल तक की उपज बड़ी आसानी से प्राप्त हो जाती है।
आजकल भाग-दौड़ भरी जिंदगी में लोग अपने बाग बगीचों में अलग अलग तरह के फूलों को उगाकर मानसिक सुकून हांसिल कर सकते हैं। आज हम आपको मौसमिक आधार पर कुछ विशेष फूलों की जानकारी प्रदान करेंगे।
आप इन पौधों को गमलों, बरामदों, टोकरियों और खिड़कियों में बड़ी ही आसानी से उगा सकते हैं। सालाना या मौसमी फूल वाले पौधे उन्हें कहा जाता है, जो अपना जीवन चक्र एक वर्षा या एक मौसम में पूर्ण कर लेते हैं ।
मौसमी फूलों के पौधे अलग अलग तरह से तैयार किये जाते हैं। दरअसल, कुछ फूलों के पौधों को पहले पौधशाला में तैयार करने के पश्चात क्यारियों में लगायें।
इसके उपरांत विभिन्न प्रकार की प्रजातियों के बीज सीधे क्यारियों में लगा दिये जाते हैं। इनके बीज काफी छोटे होते हैं। इनकी सही तरीके से बेहतर देखभाल करके पौध को तैयार कर लिया जाता है।
किसान भाई इस तरह की जमीन का चुनाव करें, जिसमें पर्याप्त मात्रा में जीवांश हों, सिंचाई और जल निकासी की अच्छी सुविधाएं उपलब्ध हों। फूलों की खेती के लिये रेतीली दोमट मृदा सबसे उपयुक्त मानी जाती है।
जमीन को तकरीबन 30 सेमी की गहराई तक खोदें, गोबर की खाद, उर्वरक, आकार के अनुरूप मिश्रित करें। (1000 वर्ग मीटर क्षेत्र में 25-30 क्विंटल गोबर की खाद) वर्षा ऋतु में पौधशाला की देखभाल अन्य मौसमों की अपेक्षा में ज्यादा करें।
क्यारियों को आकार के मुताबिक एकसार करके 5 सेमी के फासले पर गहरी पंक्तियाँ निर्मित करके उनमें 1 सेमी की दूरी पर बीज रोपण करें।
बीज बुवाई के दौरान इस बात का विशेष ख्याल रखें कि बीज एक सेमी से ज्यादा गहरा ना हो पाए। इसके बाद में इसको हल्की परत से ढकें। सुबह शाम हजारे से पानी दें। जब पौध तकरीबन 15 सेमी ऊँची हो जाए तब रोपाई करें।
ये भी पढ़े: गेंदे की खेती के लिए इस राज्य में मिल रहा 70 % प्रतिशत का अनुदान
क्यारियों में रोपाई एक निश्चित दूरी पर ही करें। सबसे आगे बौने पौधे 30 सेमी तक ऊँचाई वाले 15-30 सेमी दूरी पर, मध्यम ऊँचाई 30 से 75 सेमी वाले पौधे, 35 सेमी से 45 सेमी तथा लंबे 75 सेमी से ज्यादा ऊँचाई रखने वाले पौधे 45 सेमी से 50 सेमी के फासले पर रोपाई करें।
सिंचाई: वर्षा ऋतु में सिंचाई की अधिक जरूरत नहीं पड़ती है। अगर काफी वक्त तक वर्षा ना हो तो उस स्थिति में जरूरत के अनुरूप सिंचाई करें। शरद ऋतु में 7-10 दिन एवं ग्रीष्म ऋतु में 4-5 दिन के समयांतराल पर सिंचाई करें।
खरपतवार नियंत्रण: खरपतवार जमीन से नमी और पोषक तत्व ग्रहण करते रहते हैं, जिसके चलते पौधों के विकास तथा बढ़ोतरी दोनों पर प्रतिकूल असर पड़ता है। अर्थात उनकी रोकथाम के लिए खुरपी की मदद से घास-फूस निकालते रहें।
खाद एवं उर्वरक: पोषक तत्वों की उचित मात्रा, भूमि, जलवायु और पौधों की प्रजाति पर निर्भर करता है। आम तौर पर यूरिया- 100 किलोग्राम, सिंगल सुपरफॉस्फेट 200 किलो ग्राम एवं म्यूरेट ऑफ पोटाश 75 किलोग्राम का मिश्रण बनाकर 10 किलोग्राम प्रति 1000 वर्ग मीटर की दर से जमीन में मिला दें। उर्वरक देने के दौरान ख्याल रखें कि जमीन में पर्याप्त नमी हो।
तरल खाद: मौसमी फूलों की सही और बेहतर बढ़वार फूलों के बेहतरीन उत्पादन के लिये तरल खाद अत्यंत उपयोगी मानी गयी है। गोबर की खाद और पानी का मिश्रण उसमें थोड़ी मात्रा में नाइट्रोजन वाला उर्वरक मिलाकर देने से फायदा होता है ।
इन पौधों के बीजों की अप्रैल-मई में पौधशाला में बोवाई करें और जून-जुलाई में इसकी पौध को क्यारियों या गमलों में लगायें। मुख्य रूप से डहेलिया, वॉलसम, जीनिया, वरबीना आदि के पौध रोपित करें ।
ये भी पढ़े: गर्मियों के मौसम मे उगाए जाने वाले तीन सबसे शानदार फूलों के पौधे
इन पौधों के बीज जनवरी में बोयें तथा फरवरी में लगायें इन पर अप्रैल से जून तक फूल रहते हैं। मुख्य रूप से जीनिया, कोचिया, ग्रोमफ्रीना, एस्टर, गैलार्डिया, वार्षिक गुलदाउदी लगायें।
बीज के लिए फल चुनते समय फूल का आकार, फूल का रंग, फूल की सेहत अच्छी ही चुननी चाहिये। जब फूल पक कर मुरझा जायें तब उसे सावधानी से काट कर धूप में सुखा लें फिर सावधानी से मलकर उनके बीज निकाल लें और फिर उन्हें शीशे के बर्तन या पॉलीथिन की थैली में बंद कर लें।
बाड़ के लिये पौधे: गुलदाउदी, गेंदा।
गमले में लगाने हेतु: गेंदा, कार्नेशन, वरवीना, जीनिया, पैंजी आदि ।
पट्टी, सड़क या रास्ते पर लगाने हेतु: पिटुनिया, डहेलिया, केंडी टफ्ट आदि ।
सुगंध के लिये पौधे: स्वीट पी, स्वीट सुल्तान, पिटुनिया, स्टॉक, वरबीना, बॉल फ्लॉक्स ।
क्यारियों में लगाने हेतु: एस्टर, वरवीना, फ्लॉस्क, सालविया, पैंजी, स्वीट विलयम, जीनिया।
शैल उद्यानों में लगाने हेतु: अजरेटम, लाइनेरिया, वरबीना, डाइमार्फोतिका, स्वीट एलाइसम आदि ।
लटकाने वाली टोकरियों में लगाने हेतु: स्वीट, लाइसम, वरवीना, पिटुनिया, नस्टरशियम, पोर्तुलाका, टोरोन्सिया।
गैलार्डिया को सामान्य तौर पर कंबल फूल या नवरंगा के नाम से भी पहचाना जाता है। इसका नाम मैत्रे गेलार्ड डी चारेनटोन्यू के नाम पर रखा गया था, जो एक 18वीं सदी के फ्रांसीसी मजिस्ट्रेट जो एक उत्साही वनस्पतिशास्त्री थे।
यह एक वार्षिक या बारहमासी पौधा होता है। इसका तना सामान्यतः शाखाओं में बंटा होता है। वहीं, यह लगभग 80 सेंटीमीटर (31.5 इंच) की अधिकतम ऊंचाई तक खड़ा होता है।
गैलार्डिया को नवरंगा फूल के नाम से भी जाना जाता है। यह फूल सुन्दर रूप से रंगीन, डेजी जैसे फूल पैदा करती है। इसका इस्तेमाल बड़े स्तर पर मंदिरों में व शादी समारोह में सजावट करने में किया जाता है।
यह अल्पकालिक बारहमासी पौधा होता है, जो कि शुरूआती गर्मियों में पीले, नारंगी युक्तियों के साथ चमकदार लाल फूल पैदा करती है।
नवरंगा फूलों के पौधे बहुमुखी और बहुत ही सहजता से उगने वाले पौधे हैं। इसकी खेती करके काफी मुनाफा प्राप्त किया जा सकता है।
नवरंगा फूलों को गर्म जगहों में सहजता से लगाया जा सकता है। इसके लिए ऐसी जगहों का चयन करें जहां अधिकतम 6-8 घंटे सीधे सूर्य की रौशनी मिलती रहे, सही प्रकार से सूखी, चिकनी और रेतीली मृदा को इसकी खेती के लिए चुना जा सकता है। जो कि एक तटस्थ पीएच हो तो फूलों के पौधों को बहुत ही कम देखभाल की आवश्यकता पड़ती है।
यह 6-12 इंच के विभिन्न प्रकार के चमकीले नारंगी, लाल रंग के केंद्र वाले पौधे होते है जिनकी बाहरी पुखुडिय़ां पीले रंग की होती है।
ये भी पढ़ें: अप्रैल माह में गुलाब के फूल की खेती की विस्तृत जानकारी
यह तुरही के आकर का 14 इंच का ऊंचा पौधा होता है जिसकी पुखुडिय़ां पीले रंग के साथ गहरे लाल रंग की होती है इन पौधों के केन्द्र नारंगी होते है ।
यह किस्मों के पौधे दिखने में सुन्दर डबल गुलाब जैसे लाल पुखुडिय़ां के पीले रंग में डूबे हुए होते है ।
यह कठोर किस्म के होते हैं जो कि गहरे हरे पत्तियों के साथ महरून रंग के पुखुडिय़ां वाले होते हैं।
यह किस्म अपने नाम के अनुसार गहरे लाल, बरगंडी रंग के होते है जिसकी लम्बाई 24-36 इंच तक होती है।
इसके नारंगी रंग के फूल होते हैं जिसकी लम्बाई लगभग 2 फुट के आस-पास होती है इन किस्मों की लम्बाई अधिक होने के कारण इसे सहारे की आवश्यकता होती है।
यह किस्म दूसरे नवरंगा फूलों की तुलना में नरम रंग के होते है जो कि 2 फुट लम्बे पौधे होते हैं, जिस पर पीले रंग के केंद्रीय शंकु आकर के फूल लगते हैं इन किस्मों को कठोर क्षेत्र में लगया जा सकता है।
गैलार्डिया या नवरंगा फूलों के बीजों को गर्मियों में सीधे बगीचे में रोपा जा सकता है या फिर इनको गमलों में भी लगाया जा सकता है। गैलार्डिया को एक हेक्टेयर में उगाने के लिए 500 से 600 ग्राम बीज की जरूरत पड़ती है।
ये भी पढ़ें: गेंदे की खेती के लिए इस राज्य में मिल रहा 70 % प्रतिशत का अनुदान
बीजों की बुवाई से पूर्व उन्हें फफूंदीनाशक से उपचारित कर लेना चाहिए। फफूंदीनाशक के रूप में केप्टान या थाइराम का इस्तेमाल किया जाता है।
बीजों की बुवाई करते समय एक बीज से दूसरे बीज की दूरी 3 सेमी तथा एक कतार की दूसरी कतार के बीच की दूरी 5 सेमी रखनी चाहिए तथा बीजों को 2 सेमी से ज्यादा गहरा नहीं बोना चाहिए। बीजों की बुवाई के बाद करीब 4 से 6 सप्ताह बाद पौध खेत में रोपाई के लिए तैयार हो जाती है।
गैलार्डिया की पौध तैयार करने के लिए भूमि से लगभग 10 से 15 सेमी ऊपर क्यारियां बनाएं, ताकि अतिरिक्त जमा पानी आसानी से बाहर निकल सके।
गैलार्डिया के एक हेक्टेयर की पौध तैयार करने के लिए 150 वर्ग मीटर क्षेत्रफल वाली नर्सरी पर्याप्त रहती है। पौध के लिए क्यारियां 3 मीटर, लंबी एक मीटर चौड़ी तथा 10 से 15 सेमी ऊंची तैयार करें।
गैलार्डिया के लिए खेत तैयार करने के लिए 3 से 4 जुताई के बाद पाटा लगाकर खेत को समतल कर लेना चाहिए। पौधों का खेत में रोपण हमेशा शाम के समय ही करना चाहिए तथा रोपण के तुरंत बाद सिंचाई करनी चाहिए।
गमले में फूलों के लिए पानी और उर्वरक की आवश्यकता होती है। यह किसी भी उर्वरक के बिना भी सहजता से बढ़ सकती है। लेकिन, नवरंगा फूलों में पौधे निषेचन के लिए 1 बार उर्वरक की आवश्यकता होती है।
कम्बल फूलों के बीजों को बोने से पूर्व अच्छी गुणवत्ता वाली जैविक खाद को मृदा में 2:1 के अनुपात में सही ढ़ंग से मिला दें।
ये भी पढ़ें: घर की बालकनी को गुलाब के फूलों से महकाने का आसान तरीका
जैविक खाद के रूप में गोबर की खाद या केंचुए की खाद का इस्तेमाल कर सकते हैं, कम्बल फूलों को बहुत ही कम पानी की आवश्यकता होती है।
खरपतवार नियंत्रण सामान्यतः एक महत्वपूर्ण क्रिया है। खरपतवार, पानी और पोषक तत्वों के लिए फसल के साथ प्रतिस्पर्धा करके बीजों की पैदावार को कम कर देते हैं।
खरपतवार नियंत्रण के लिए मल्चिंग एक शानदार विकल्प हो सकता है। इसके अतिरिक्त रासायनिक खरपतवारों का छिडक़ाव करके भी नियंत्रण किया जा सकता है। जैसे पेनांट मैगनम एट्रिलीन 4 से पहले रोपण के एक छोटे से भाग पर इनका परीक्षण विवेकपूर्ण अवश्य करें।
कम लागत में ज्यादा मुनाफा कौन नहीं कमाना चाहता ! लेकिन कम लागत में खेत पर कमल उगाने की बात पर चौंकना लाजिमी है, क्योंकि आम तौर पर सुनते आए हैं कि कमल कीचड़ में ही खिलता है।
जी हां, कृषि वैज्ञानिकों की मानें तो कम लागत में ज्यादा उत्पादन, संग-संग ज्यादा कमाई के लिए कृषकों को खेतों में कमल की खेती करनी चाहिए। कृषि वैज्ञानिकों ने कमल को कम लागत में भरपूर उत्पादन और मुनाफा देने वाली फसलों की श्रेणी में शामिल किया है।
जमा तौर पर माना जाता है कि तालाब झील या जल-जमाव वाले गंदे पानी, दलदल आदि में ही कमल पैदा होता, पनपता है। लेकिन आधुनिक कृषि विज्ञान का एक सच यह भी है कि, खेतों में भी कमल की खेती संभव है।
न केवल कमल को खेत में उगाया जा सकता है, बल्कि कमल की खेती में समय भी बहुत कम लगता है। अनुकूल परिस्थितियों में महज 3 से 4 माह में ही कमल के फूल की पैदावार तैयार हो जाता है।
ये भी पढ़ें: किसानों को करे मालामाल, इसे कहते हैं सोना लाल, करे केसर की खेती
भारत के संविधान में राष्ट्रीय पुष्प का दर्जा रखने वाले कमल का वैज्ञानिक नाम नेलुम्बो नुसिफेरा (Nelumbo nucifera, also known as Indian lotus or Lotus) है। भारत में इसे पवित्र पुष्प का स्थान प्राप्त है।
भारत की पौराणिक कथाओं, कलाओं में इसे विशिष्ट स्थान प्राप्त है। प्राचीन काल से भारतीय संस्कृति के शुभ प्रतीक कमल को उनके रंगों के हिसाब से भी पूजन, अनुष्ठान एवं औषथि बनाने में उपयोग किया जाता है।
सफेद, लाल, नीले, गुलाबी और बैंगनी रंग के कमल पुष्प एवं उसके पत्तों, तनों का अपना ही महत्व है। भारतीय मान्यताओं के अनुसार कमल का उद्गम भगवान श्री विष्णु जी की नाभि से हुआ था।
बौद्ध धर्म में कमल पुष्प, शरीर, वाणी और मन की शुद्धता का प्रतीक है। दिन में खिलने एवं रात्रि में बंद होने की विशिष्टता के अनुसार मिस्र की पौराणिक कथाओं में कमल को सूर्य से संबद्ध माना गया है।
अत्यधिक प्यास लगने, गले, पेट में जलन के साथ ही मूत्र संबंधी विकारों के उपचार में भी कमल पुष्प के अंश उत्तम औषधि तुल्य हैं। कफ, बवासीर के इलाज में भी जानकार कमल के फूलों या उसके अंश का उपयोग करते हैं।
ये भी पढ़ें: घर पर उगाने के लिए ग्रीष्मकालीन जड़ी बूटियां
हालांकि जान लीजिये कमल की खेती के लिए कुछ खास बातों का ध्यान रखना अनिवार्य है। खास तौर पर नमीयुक्त मिट्टी इसकी पैदावार के लिए खास तौर पर अनिवार्य है।
यदि भूमि में नमी नहीं होगी तो कमल की पैदावार प्रभावित हो सकती है। मतलब साफ है कि खेत में भी कमल की खेती के लिए पानी की पर्याप्त मात्रा जरूरी है। ऐसे में मौसम के आधार पर भी कमल की पैदावार सुनिश्चित की जा सकती है।
खास तौर पर मानसून का माह खेत में कमल उगाने के लिए पुूरी तरह से मददगार माना जाता है। मानसून में बारिश से खेत मेें पर्याप्त नमी रहती है, हालांकि खेत में कम बारिश की स्थिति में वैकल्पिक जलापूर्ति की व्यवस्था भी रखना जरूरी है।
ये भी पढ़ें: मानसून सीजन में तेजी से बढ़ने वाली ये 5 अच्छी फसलें
खेत में कमल खिलाने के लिए सर्व प्रथम खेत की पूरी तरह से जुताई करना जरूरी है। इसके बाद क्रम आता है जुताई के बाद तैयार खेतों में कमल के कलम या बीज लगाने का। इस प्रक्रिया के बाद तकरीबन दो माह तक खेत में पानी भर कर रखना जरूरी है।
पानी भी इतना कि खेत में कीचड़ की स्थिति निर्मित हो जाए, क्योंकि ऐसी स्थिति में कमल के पौधों का तेजी से सुगठित विकास होता है। भारत के खेत में मानसून के मान से पैदा की जा रही कमल की फसल अक्टूबर माह तक तैयार हो जाती है।
जिसके बाद इसके फूलों, पत्तियों और इसके डंठल ( कमलगट्टा ) को उचित कीमत पर विक्रय किया जा सकता है। मतलब मानसून यानी जुलाई से अक्टूबर तक के महज 4 माह में कमल की खेती किसान के लिए मुनाफा देने वाली हो सकती है।
ये भी पढ़ें: तितली मटर (अपराजिता) के फूलों में छुपे सेहत के राज, ब्लू टी बनाने में मददगार, कमाई के अवसर अपार
एक एकड़ की जमीन पर कमल के फूल उगाने के लिए ज्यादा पूंजी की जरूरत भी नहीं। इतनी जमीन पर 5 से 6 हजार पौधे लगाकर किसान मित्र वर्ग भरपूर मुनाफा कमा सकते हैं।
बीज एवं कलम आधारित खेती के कारण आंकलित जमीन पर कमल उपजाने, खेत तैयार करने एवं बीज खर्च और सिंचाई व्यय मिलाकर 25 से 30 हजार रुपयों का खर्च किसान पर आता है।
पत्ता, फूल संग तना (कमलगट्टा) और जड़ों तक की बाजार में भरपूर मांग के कारण कमल की खेती हर हाल में मुुनाफे का सौदा कही जा सकती है। कृषि के जानकारों के अनुसार 1 एकड़ जमीन में 25 से 30 हजार रुपयों की लागत आती है।
इसके बाद 4 महीने की मेहनत मिलाकर कमल की पैदावार से अनुकूल स्थितियों में 2 लाख रुपयों तक का मुनाफा कमाया जा सकता है।
ये भी पढ़ें: पत्ता गोभी की खेती की सम्पूर्ण जानकारी
ये भी पढ़ें: जैविक खाद का करें उपयोग और बढ़ाएं फसल की पैदावार, यहां के किसान ले रहे भरपूर लाभ
यह एक प्रकार कीट होते हैं, जो पौधे के बड़े होने के समय फूल गोभी के पत्तों में अंडे देते हैं और बाद में पत्तियों को खाकर सब्जी की उत्पादकता को कम करते हैं।
इस रोग के इलाज के लिए बेसिलस थुरिंगिएनसिस (Bacillus thuringiensis) के घोल का छिड़काव करना चाहिए।
इसके अलावा बाजार में उपलब्ध फेरोमोन ट्रैप (pheromone trap) का इस्तेमाल कर बड़े कीटों को पकड़ा जाना चाहिए।
यह रोग छोटे हल्के रंग के कीटों के द्वारा फैलाया जाता है। यह छोटे कीट, पौधे की पत्तियों और कोमल भागों का रस को निकाल कर अपने भोजन के रूप में इस्तेमाल कर लेते हैं, जिसकी वजह से गोभी के फूल का विकास अच्छे से नहीं हो पाता है।
[caption id="attachment_11030" align="alignnone" width="800"] एफिड रोग[/caption]इस रोग के निदान के लिए डाईमेथोएट (Dimethoate) नामक रासायनिक उर्वरक का छिड़काव करना चाहिए।
फूल गोभी और पत्ता गोभी प्रकार की सब्जियों में यह एक प्रमुख रोग होता है, जो कि एक जीवाणु के द्वारा फैलाया जाता है। इस रोग की वजह से पौधे की पत्तियों में हल्के पीले रंग के धब्बे होने लगते हैं और जड़ का अंदरूनी हिस्सा काला दिखाई देता है। सही समय पर इस रोग का इलाज नहीं दिया जाए तो इससे तना कमजोर होकर टूट जाता है और पूरे पौधे का ही नुकसान हो जाता है।
इस रोग के इलाज के लिए कॉपर ऑक्सिक्लोराइड (copper oxychloride) और स्ट्रैप्टो-साइक्लीन (Streptocycline) का पानी के साथ मिलाकर एक घोल तैयार किया जाना चाहिए, जिसका समय-समय पर फसल पर छिड़काव करना चाहिए।
यदि इसके बावजूद भी इस रोग का प्रसार नहीं रुकता है तो, रोग से ग्रसित पौधों को उखाड़कर इकट्ठा करके उन्हें जलाकर नष्ट कर देना चाहिए।
इसके अलावा रंगीन फूलगोभी में आर्द्रगलन और डायमंड बैकमॉथ (Diamondback Moth) जैसे रोग भी होते हैं, इन रोगों का इलाज भी बेहतर बीज उपचार और वैज्ञानिक विधि की मदद से आसानी से किया जा सकता है। आशा करते हैं Merikheti.com के द्वारा हमारे किसान भाइयों को हाल ही में बाजार में लोकप्रिय हुई नई फसल 'रंगीन फूलगोभी' के उत्पादन के बारे में संपूर्ण जानकारी मिल गई होगी और भविष्य में आप भी बेहतर लागत-उत्पादन अनुपात को अपनाकर अच्छी फसल ऊगा पाएंगे और समुचित विकास की राह पर चल रही भारतीय कृषि को सुद्रढ़ बनाने में अपना योगदान देने के अलावा स्वंय की आर्थिक स्थिति को भी मजबूत बना पाएंगे।
ये भी पढ़ें: अधिक पैदावार के लिए करें मृदा सुधार
ये भी पढ़ें: सूरजमुखी की फसल के लिए उन्नत कृषि विधियाँ (Sunflower Farming in Hindi)
ये भी पढ़ें: ईसबगोल को जैविक खाद से तैयार करने पर दोगुनी हो गई गुजरात के किसानों की आय
ये भी पढ़ें: सरसों की खेती से होगी धन की बरसात, यहां जानिये वैज्ञानिक उपाय जिससे हो सकती है बंपर पैदावार
हाल ही में भारत सरकार ने सूरजमुखी के न्यूनतम समर्थन मूल्य में बढ़ोत्तरी कर दी है। इस लिहाज से अब सूरजमुखी की खेती करके किसान भाई पहले की अपेक्षा ज्यादा कमाई कर सकते हैं। सरकार ने रबी सीजन के लिए सूरजमुखी के न्यूनतम समर्थन मूल्य में 209 रूपये प्रति क्विंटल की बढ़ोत्तरी की है। इस हिसाब से अब किसान भाइयों के लिए सूरजमुखी के बीजों का न्यूनतम समर्थन मूल्य 5,650 रुपये प्रति क्विंटल हो गया है।
छत्तीसगढ़ राज्य के कृषक बड़े पैमाने पर शेडनेट तकनीक द्वारा फूलों का उत्पादन कर रहे हैं। इससे उनकी आमदनी भी काफी बढ़ गई है। किसान केवल पारंपरिक फसलों की खेती से हटकर फूल उगाकर भी अच्छी आमदनी कर सकते हैं। फूलों की मांग भारत सहित पूरी दुनियाभर में है। यदि किसान भाई शेडनेट तकनीक से फूलों का उत्पादन करें, तब उनको अधिक आमदनी होगी। इस तकनीक से जरिए वर्षभर एक ही खेत में फूल का उत्पादन किया जा सकता है। शेडनेट तकनीक में खर्चा भी कम आता है। ऐसी स्थिति में किसान भाई शेडनेट तकनीक का उपयोग करके अपनी आमदनी को बढ़ा सकते हैं। छत्तीसगढ़ जनसंपर्क के अनुसार, छत्तीसगढ़ के किसान बड़े पैमाने पर शेडनेट तकनीक द्वारा फूलों का उत्पादन कर रहे हैं। नतीजतन, उनकी आमदनी भी काफी बढ़ चुकी है। साथ ही, इस तकनीक के चलते फूलों की पैदावार भी बढ़ गई है। विशेष बात यह है, कि यहां के कृषक शेडनेट के अतिरिक्त पॉली हाऊस, ड्रिप और मच्लिंग तकनीक द्वारा भी फूलों की खेती कर रहे हैं। इन किसानों द्वारा उत्पादित फूलों की मांग हैदराबाद, भुवनेश्वर, अमरावती और नागपुर जैसे बड़े शहरों में भरपूर है।
फूलों की खेती करने के लिए शेडनेट तकनीक बेहद फायदेमंद है। इस तकनीक के उपयोग से खेती करने पर फसल में कीट संक्रमण और रोगिक भय नहीं रहता है। अब ऐसी स्थिति में फूलों की पैदावार एवं गुणवत्ता पर असर नहीं पड़ता हैं। विशेष बात यह है, कि दीर्घकाल तक एक ही स्थान पर फसल के लगे रहने से कृषकों को परिश्रम कम करना पड़ता है। इससे उनकी आमदनी भी दोगुनी हो जाती है।
यह भी पढ़ें: बसंत ऋतु के दौरान फसलों में होने वाले कीट संक्रमण से संरक्षण हेतु रामबाण है यह घोल
जानकारों के अनुसार, इस तकनीक का उपयोग गर्मी से पौधों को संरक्षण देने के उद्देश्य से तैयार किया गया है। शेडनेट के अंतर्गत आप गर्मी के मौसम में नहीं उगने वाले पौधों का भी उत्पादन कर सकते हैं। साथ ही, बारिश के मौसम में भी शेडनेट के कारण फूल सुरक्षित रहते हैं। परंतु, फिलहाल छत्तीसगढ़ सरकार अपने प्रदेश में इस तकनीक के माध्यम से खेती करने वाले कृषकों को बढ़ावा देने का कार्य कर रही है। प्रदेश सरकार इसके लिए राष्ट्रीय बागवानी मिशन के तहत संरक्षित खेती हेतु 50 प्रतिशत अनुदान प्रदान कर रही है। इस योजना के चलते किसान भाई ज्यादा से ज्यादा 4000 वर्गमीटर में शेडनेट स्थापित कर सकते हैं।